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काल,काल के प्रकार,वाच्य,वाच्य के प्रकार,वाच्य परिवर्तन

By Admin@guru

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हेलो दोस्तों ! को एक बार फिर से स्वागत है आप स huभी का हमारी वेबसाइट GURUSMILE पर, आज हम यहां पर हिंदी व्याकरण के बिन्दु विकारी शब्द में काल व वाच्य के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे ।

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🔹🔷 काल 🔷🔹

काल की परिभाषा :-

हिन्दी व्याकरण में क्रिया के होने वाले समय को काल कहते हैं ।

काल के प्रकार:-

काल तीन प्रकार के होते हैं –

(1) भूतकाल

(2) वर्तमान काल व

(3) भविष्यत् काल ।

(1) भूतकाल :

भूतकाल की परिभाषा :-

वाक्य में प्रयुक्त क्रिया के रूप से बीते समय (भूत) में क्रिया का होना पाया जाता है अर्थात् क्रिया के व्यापार की समाप्ति बतलाने वाले रूप को भूतकाल कहते हैं ।

भूतकाल के 6 उपभेद किए जाते हैं, जो निम्नानुसार हैं –

(i) सामान्य भूतकाल :-

जब क्रिया के व्यापार की समाप्ति सामान्य रूप से बीते हुए समय में होती है, किन्तु इससे यह बोध नहीं होता की क्रिया समाप्त हुए थोड़ी समय हुआ है या अधिक समय, वहां सामान्य भूतकाल होता है ।

जैसे – (1) कुसुम घर गयी ।

(2)  अविनाश ने गाना गाया ।

(3)  अकबर ने पुस्तक पढ़ी ।

(ii) आसन्न भूतकाल :-

क्रिया के जिस रुप से यह प्रकट होता है कि क्रिया का व्यापार अभी-अभी कुछ समय पूर्व ही समाप्त हुआ है, वहां आसन्न भूतकाल होता है । अतः सामान्य भूतकाल के क्रिया रूप के साथ है/हैं के योग से आसन्न भूतकाल का रूप बन जाता है ।

जैसे – (1) कुसुम घर गई है ।

(2)  अविनाश ने गाना गाया है ।

(3)  अकबर ने पुस्तक पढ़ी है ।

(iii) पूर्ण भूतकाल :-

क्रिया के जिस रुप से यह प्रकट होता है कि क्रिया का व्यापार बहुत समय पूर्व समाप्त हो गया था, वहां पूर्ण भूतकाल होता है । अतः सामान्य भूतकाल की क्रिया के साथ ‘था, थी, थे’ लगने से काल पूर्ण भूतकाल बन जाता है, किन्तु ‘थी’ से पूर्व ‘ई’ ही रहती है ‘ईं’ नहीं होती ।

जैसे – (1) भूूपेन्द्र सिरोही गया था ।

(2)  नीतू ने खाना बनाया था ।

(iv) अपूर्ण भूतकाल :-

क्रिया के जिस रुप से यह ज्ञात हो कि उसका व्यापार भूतकाल में अपूर्ण रहा अर्थात् निरन्तर चल रहा था तथा उसकी समाप्ति का पता नहीं चलता है, वहां अपूर्ण भूतकाल होता है । इसमें धातु (क्रिया) के साथ ‘रहा है, रही है, रहे हैं या ता था, ती थी, ते थे’ आदि आते हैं ।

जैसे – (1) हेमंत ने हेमन्त पुस्तक पढ़ता था ।

(2)  वर्षा गाना गा रही थी ।

(v) संदिग्ध भूतकाल :-

क्रिया के जिस भूतकालिक रुप से उसके कार्य (व्यापार) होने के विषय में सन्देह प्रकट हो, उसे संदिग्ध भूतकाल कहते हैं ।सामान्य भूतकाल की क्रिया के साथ ‘होगा, होगी, होंगे’ लगने से संदिग्ध भूतकाल का रूप बन जाता है ।

जैसे – (1) अनवर गया होगा ।

(2)  शबनम खाना बना रही होगी ।

(vi) हेतुहेतुमद् भूतकाल :-

भूतकालिक क्रिया का वह रूप, जिससे भूतकाल में होने वाली क्रिया का होना किसी दूसरी क्रिया के होने पर अवलम्बित हो, तो वहां हेतुहेतुमद् भूतकाल होता है । इस रूप में दो क्रियाओं का होना आवश्यक है तथा क्रिया के साथ ‘ता, ती, ते’ लगता है ।

जैसे – (1) यदि महेन्द्र पढता तो उत्तीर्ण होता ।

(2)  युद्ध होता तो गोलियां चलती ।

(2) वर्तमान काल :

वर्तमान काल की परिभाषा :-

क्रिया के जिस रूप से वर्तमान समय में क्रिया का होना पाया जाए, उसे वर्तमान काल कहते हैं ।

वर्तमान काल के प्रकार :-

वर्तमान काल के पांच भेद माने जाते हैं –

(i) सामान्य वर्तमान काल :-

जब क्रिया के व्यापार के सामान्य रूप से वर्तमान समय में होना प्रकट हो, तो वहां सामान्य वर्तमान काल होता है । इसमें धातु (क्रिया) के साथ ‘ता है, ती है, ते हैं’ आदि आते हैं ।

जैसे – (1) अंकित पुस्तक पढ़ता है ।

(2)  गरिमा गाना गाती है ।

(3) नीरज  दौड़ लगाता है ।

(ii) अपूर्ण वर्तमान काल :-

जब क्रिया के व्यापार के अपूर्ण होने अर्थात् क्रिया के चलते रहने का बोध होता है, वहां अपूर्ण वर्तमान काल होता है ‌‌।  इसमें धातु (क्रिया) के साथ ‘रहा है, रही है, रहे हैं’ आदि आते हैं ।

जैसे – (1) प्रशान्त खेल रहा है ।

(2)  सरोज गीत गा रही है ।

(3)  नीरज दौड़ लगा रहा है ।

(iii) संदिग्ध वर्तमान काल :-

जब क्रिया के वर्तमान काल में होने पर संदेह हो, वहां संदिग्ध वर्तमान काल होता है । इसमें क्रिया के साथ ‘ता, ती, ते’ के साथ ‘होगा, होगी, होंगे’ का भी प्रयोग होता है ।

जैसे – (1) नीरज खेत में काम करता होगा ।

(2)  राम पत्र लिखता होगा ।

(3)  राजू दौड़ लगाता होगा ।

(iv) संभाव्य वर्तमान काल :-

जिस क्रिया से वर्तमान काल की अपूर्ण क्रिया की संभावना या आशंका व्यक्त हो, वहां संभाव्य वर्तमान काल होता है ।

जैसे – (1) शायद आज  पिताजी आते हों ।

(2)  मुझे डर है कि कहीं कोई हमारी बात सुनता न हो ।

(v) आज्ञार्थ वर्तमान काल :-

क्रिया के व्यापार के वर्तमान समय में ही चलने की आज्ञा का बोध कराने वाला रूप आज्ञार्थ वर्तमान काल कहलाता है ।

जैसे – (1) राधा, तू, नाच ।

(2)  आप भी पढ़िए ।

(3) भविष्यत् काल :

भविष्यत् काल की परिभाषा :-

क्रिया के जिस रूप से आने वाले समय में (भविष्य में) होना पाया जाता है, उसे भविष्यत् काल कहते हैं ।

भविष्यत् काल के तीन भेद किए जाते हैं –

(i) सामान्य भविष्यत् काल :-

क्रिया के जिस रुप से उसके भविष्य में, सामान्य रूप में होने का बोध हो, तो उसे सामान्य भविष्यत् काल कहते हैं । इसमें क्रिया (धातु) के अन्त में ‘एगा, एगी, एंगे’ आदि लगते हैं ।

जैसे – (1) लीला नृत्य प्रतियोगिता में भाग लेेंगी।

(2)   नीरज दौड़ लगाएगा ।

(ii) सम्भाव्य भविष्यत् काल :-

क्रिया के जिस रुप से उसके भविष्य में होने की संभावना का पता चले, वहां सम्भाव्य भविष्यत् काल होता हैै।  इसमें क्रिया के साथ ‘ए, ऐ, ओ, ऊ’ का योग होता है ।

जैसे – (1) कदाचित आज भूूपेन्द्र आए ।

(2)  वे शायद जयपुर जाएं ।

(iii) आज्ञार्थ भविष्यत् काल :-

किसी क्रिया व्यापार के आगामी समय में पूर्ण करने की आज्ञा  प्रकट करने के रूप को आज्ञार्थ भविष्यत् काल कहते हैं । इसमें क्रिया के साथ ‘इएगा’ लगता है ।

जैसे – आप वहां अवश्य जाइएगा ।

 

 

🔹🔷 वाच्य 🔷🔹

वाच्य की परिभाषा :-

वाक्य में प्रयुक्त क्रिया रूप कर्त्ता, कर्म या भाव किसके अनुसार प्रयुक्त हुआ है, इसका बोध कराने वाले कारकों को वाच्य कहते हैं ।

वाच्य के प्रकार :-

वाच्य तीन प्रकार के होते हैं –

(1) कर्तृवाच्य

(2) कर्मवाच्य व

(3) भाववाचक ।

(1) कर्तृवाच्य :-

  जब वाच्य में प्रयुक्त क्रिया का सीधा और प्रधान सम्बन्ध कर्त्ता से होता हैै, अर्थात् क्रिया के लिंंग, वचन कर्त्ता के अनुसार  प्रयुुक्त होते हैं, उसे कर्तृवाच्य कहतेे  हैं।

जैसे – (i) लड़का दूध पीता है ।

(ii)  लड़कियां दूध पीती हैं ।

प्रथम वाक्य में ‘पीता है ।’ क्रिया कर्त्ता ‘लड़का’ के अनुसार पुल्लिंग, एक वचन की है जबकि दूसरे वाक्य में ‘पीती हैं ।’ क्रिया कर्त्ता ‘लड़कियां’ के अनुसार स्त्रीलिंंग, बहुवचन की है ।

(2) कर्मवाच्य :-

जब वाक्य में प्रयुक्त क्रिया का सीधा सम्बन्ध वाक्य में प्रयुक्त कर्म से होता है अर्थात् क्रिया के लिंग, वचन कर्त्ता के अनुसार न होकर कर्म के अनुसार होते हैं, उसे कर्मवाच्य कहते हैं । कर्मवाच्य सदैव सकर्मक क्रियाओं का ही होता है क्योंकि इसमें ‘कर्म’ की प्रधानता रहती है ।

जैसे – (i) राम ने चाय पी ।

(ii)  सीता ने दूध पीया ।

उपर्युक्त प्रथम वाक्य में क्रिया ‘पी’ स्त्रीलिंग एकवचन है जो वाक्य में प्रयुक्त कर्म ‘चाय’ में (स्त्रीलिंग, एकवचन) के अनुसार आयी हैं । द्वितीय वाक्य में प्रयुक्त क्रिया ‘पीया’ पुल्लिंग, एकवचन में है जो वाक्य में प्रयुक्त कर्म ‘दूध’ (पुल्लिंग,  एकवचन) के अनुसार है ।

कर्मवाच्य की दो स्थितियां होती है –

(i) कर्त्तायुक्त कर्मवाच्य व

(ii) कर्त्ता रहित कर्मवाच्य ।

(i) कर्त्तायुक्त कर्मवाच्य :-

जब वाक्य में कर्त्ता विद्यमान हो तो वह  तिर्यक कारक की स्थिति में होगा अर्थात् कर्त्ता कारक चिन्ह (विभक्ति) युक्त होगा तथा ऐसी स्थिति में क्रिया बीते समय की (भूतकालिक) होगी। जैसे – (i) नरेन्द्र ने मिठाई खाई ।

(ii)  रोजी ने दूध पीया ।

(ii) कर्त्ता रहित कर्मवाच्य :-

कर्त्ता रहित कर्म वाच्य की स्थिति में वाक्य में प्रयुक्त कर्म ही प्रत्यक्ष कर्त्ता के रूप में प्रयुक्त होता है । ऐसी स्थिति में क्रिया संयुक्त होती है ।

जैसे – एक ओर अध्ययन हो रहा था, दूसरी ओर मैच चल रहा था । जबकि क्रिया की पूर्णता की स्थिति में क्रियापद के गठन में ‘आ । ई । ए’ मुख्यधातु में न जुड़कर उसके तुरन्त बाद में प्रयुक्त सहायक धातु में जुड़ते हैं ।

जैसे – अन्थेनी की घड़ी चुरा ली गई चोर पकड़ लिए गए ।

(3) भाववाच्य :-

जब वाक्य में प्रयुक्त क्रिया न तो कर्त्ता के अनुसार होती है, ओर न ही कर्म के अनुसार, बल्कि असमर्थता के भाव  के साथ वहां भाववाच्य होता है ।

जैसे – आंखों में दर्द के कारण मुझ से पढ़ा नहीं जाता । इस स्थिति में अकर्मक क्रिया का ही प्रयोग भाववाच्य में होता है ।

भाववाच्य की एक अन्य स्थिति यह भी है कि यदि क्रिया सकर्मक हो तथा कर्त्ता और कर्म दोनों  तिर्यक  (विभक्तिचिन्ह युक्त) हो तो क्रिया सदैव पुल्लिंग, अन्यपुरुष, एकवचन, भूतकाल की होगी ।

जैसे –  राम ने रावण को मारा ।

लड़कियों ने लड़कों को पीटा ।

वाच्य परिवर्तन :

(1)  कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य बनाना :-

कर्तृवाच्य में कर्त्ता की प्रधानता होती है, जबकि कर्मवाच्य में कर्म की । अतः किसी वाक्य को कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य बनाते समय, वाक्य में कर्त्ता को प्रधानता न देकर उसे गौण बना दिया जाता है तथा कर्म को प्रधानता दी जाती है । कर्त्ता की गौौण की स्थिति भी दो प्रकार से हो सकती हैै।  एक कर्त्ता को करण कारक या माध्यम के रूप में प्रयुक्त कर, उसके साथ ‘से के द्वाराा’ आदि विभक्तियां लगाकर या दूसरी स्थिति में कर्त्ता का लोोप ही कर दिया जाता हैै।

जैसे –  ‘राम पत्र लिखेगा ।’ कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य रूप बनेगा ‘राम द्वारा पत्र लिखा जाएगा ।’

अन्य उदाहरण –

कर्तृवाच्य                                  कर्मवाच्य

(1) कलाकार मूर्ति गढ़ता है।           कलाकार द्वारा मूर्ति गढ़ी जाती है  ।  (2) वह पत्र लिखता है ।                उसके द्वारा पत्र लिखा जाता है  ।      (3) प्रशांत ने पुस्तक पढ़ी ।             प्रशांत द्वारा पुस्तक पढ़ी गई ।          (4) दादी कहानी सुनाएगी ।            दादी द्वारा कहानी सुनाई जाएगी ।     (5) मैं व्यायाम करता हूं ।               मेरे द्वारा व्यायाम किया जाता है ।

(2) कर्तृवाच्य से भाववाच्य बनाना :-

कर्तृवाच्य में क्रिया कर्त्ता के अनुसार प्रयुक्त होती है जबकि भाववाच्य में प्रयुक्त क्रिया कर्त्ता के अनुकूल होती है, न  कि  कर्म  के अनुसार बल्कि वह असमर्थता के भाव के अनुसार होतीी है ।  अतः कर्तृवाच्य से भाववाच्य बनाते समय कर्त्ता के साथ ‘सेे’ लगाया जाता है या कर्त्ता का उल्लेख ही नहीं होता, किन्तु कर्त्ता के उल्लेख न होने की स्थिति तब होती है, जब मूल कर्त्ता सामान्य (लोग) हो । साथ ही मुख्य क्रिया के पूर्ण कृदन्ती क्रमों के बाद  संयोगी क्रिया ‘जा’ ती लगती है । जैसे –

कर्तृवाच्य                                      भाववाच्य

 (i) मैं अब चल नहीं पाता ।               मुझसे अभी चला नहीं जाता ।       (ii) गर्मियों में लोग खूब नहाते हैं ।       गर्मियों में खूब नहाया जाता हैं ।   (iii) वे गा नहीं सकते ।                      उनसे गाया नहीं जा सकता ।

(3) कर्मवाच्य/भाववाच्य से कर्तृवाच्य बनानाा :-

कर्तृवाच्य वाक्य में कर्त्ता की प्रधानता होती है जबकि कर्म वाच्य में कर्म की । अतः कर्मवाच्य से  कर्तृवाच्य बनाते समय पुनः कर्त्ता के अनुसार क्रिया प्रयुक्त कर देंगे ।

जैसे

कर्मवाच्य                                   कर्तृवाच्य

(i) उसके द्वारा पत्र लिखा जाएगा ।               वह पत्र लिखेगा ।            (ii) बच्चों द्वारा चित्र बनाए गए ।                   बच्चों ने चित्र बनाए ।      (iii) गधे द्वारा बोझा ढोया गया ।                     गधे ने बोझा ढोया । 

 

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